Kashti



काँटों से मुझे बैर न था कभी
हमें तो फूल जख्म दे जाते हैं.
न जाने क्यों मोड़ देते हैं हम अपनी कश्ती उधर
जहाँ जाकर हम रोज डूब जाते हैं.

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