Kagaz




क्यों उतारता हूँ मैं अपनी ज़िन्दगी को कागजों पर,
ये जानते हुए कि ज़िन्दगी दिल पर उतरी है?

बेशक शिकायत नहीं है मुझे खुशियों की इन महफ़िलों से,
पर हमें तो ग़मों से दिल लगाने की आदत सी हो चली है.

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