Over A Cup Of Coffee - Part 2
अब
ना वो बुलबुलों भरी कॉफ़ी के प्याले होंगे और ना ही होगी पार्ले जी के कुरकुरे बिस्कुटों
की मिठास! एक सफ़र जिसका आगाज़ हुआ था कुछ २ साल पहले आज उसके अंजाम का दिन है. वेदास
इन्फोलाइन, जहाँ मैंने अपने जीवन के कुछ सबसे बहेतरीन और यादगार पल बिताये, में आज मेरा आखिरी दिन है और इसी के साथ दिन है
एक नयी शुरुआत का भी. लेकिन फिर भी ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है की कुछ छूट रहा है
पीछे, शायद कुछ रिश्ते, कुछ यादें जिनमें एक जोगी की तरह रम सा गया था मैं. शायद मैं
भूल गया था की हर सफ़र की तरह इस सफ़र का भी
अंत एक न एक दिन होना ही था.
ऑफिस
की एक आलीशान कुर्सी पर बैठे मैं समेंट रहा हूँ उन पलों को जिन्हें मैं अपने यादों
के पिटारे में बंद कर के ले जा सकूं, एक अमानत की तरह, एक जागीर की तरह जो कभी ख़त्म
ना हो. मेरे ऊपर लगे भीमकाय ऐसी से आंधी की तरह निकलती हवा मेरे शरीर की गर्मी को दूर
करने की बाजाय एक अजीब सी सिरहन पैदा कर रही है. बड़े ही विस्मय में हूँ कि क्या भूलूँ
क्या याद करूं. यादें अनगिनत हैं पर वक़्त महज कुछ घंटो का! आपको नहीं लगता की कुछ
ज्यादा ही नाइंसाफी है यह. खैर जाने दीजिये; आज आप मुझे अपने ही हाल पर छोड़ दे तो
बड़ी महेरबानी होगी.
बहुत
कुछ बदला इन महीनो में पर जो कभी ना बदला था वो था ठीक ११ बजे एक झुण्ड में थके हुए
पंछियों की तरह हमारा इकट्ठा हो जाना और कॉफ़ी की चुस्कियों के साथ एक दुसरे की टांग
खीचना. सोच रहा हूँ कि उस कॉफ़ी की खुशबू को एक बोतल में बंद कर के ले जाऊं. और पार्ले
जी का वो पैकेट, जिस पर बना वो छोटा सा लड़का आज भी उतना ही छोटा है जितना कि २५ साल
पहले, उसका मैं क्या करूं? १० रूपये का मिलता है वो पैकेट बाज़ार में, लेकिन क्या मुझे
वही स्वाद मिलेगा उसे अकेला खाने पर जो मुझे अपने दोस्तों के साथ मिलता था? शायद नहीं.
कुछ चीजों की कीमत ही नहीं होती. दोस्ती की तरह ही वो भी बेशकीमती होतीं हैं.
आज
वैसे मेरे सारे दोस्त हैं मेरे इर्द-गिर्द, सिवाय एक के. सचिन आज ऑफिस आने के चंद घंटों
बाद ही घर चला गया. उसकी तबियत आज कुछ नासाज थी. सुबह से ही पेट दर्द की शिकायत कर
रहा था वो. और जब दर्द काबू से बहार हो गया तो मजबूरन उसे घर जाना ही पड़ा. भला घर जैसी
आराम और कहाँ. अपने घर की छोटी-छोटी चिडिओं को ही देखकर उसका दर्द कुछ हल्का हो जायेगा.
पर उम्मीद करता हूँ की शाम तक वो ठीक हो जाये और मुझसे मिल सके. उससे मिले बिना जाना
बड़ा मुश्किल होगा मेरे लिए. आख़िरकार वो हमारी छोटी सी गैंग का सरदार है. और अगर मैं
सरदार से मिले बिना जाऊंगा तो सरदार नाराज हो जायेगा. है ना? विशाल, विनोद, अश्वनी,
तेज और सुमित सभी हैं पास में. लेकिन वो भी आज उतने ही खामोश और शांत हैं जितना की
मैं.
Awesome Yar shi me bda sad feel ho rha ha Veere!!!
ReplyDeleteSame here, bro! Will miss u all!
Deletebhai ji aaj tak nahi rulaya aapne par aaj jarur jab office se bahar niklenge to sabki aanko nam jarur hongi ***saale miss You yaar***
ReplyDeleteThat's gonna happen...for sure!
DeleteBro we didn't had much chats together, but the ones we had are enough to know the kind of person you are as you spread the essence of your loving and kind nature through words, just like a flower in the garden. But I guess today that flower is about to leave that garden to spread his fragrance into a new garden all the best for that bro we all miss you.
ReplyDeleteTruckload of thanks for appreciating this piece of article. And also for your encouraging and inspiring words. I am gonna miss u all!
DeleteYou carve your thoughts completely in to words.
ReplyDeleteTumhare Raah badalne ki baat kis se karu
ReplyDeleteMein apne Khawaab bhikharne ki baat kis se karu
Abhi vo jaan-e-Ghazal door hai nigaaho se
Abhi mein yar ke bichhudane ki baat kis se karu.....
Excellent Naresh ji!
DeleteExcellent Naresh ji!
DeleteMohnish... Bahut badiya Bhai
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